ज़रूरतमंदों की ज़रूरतें पुरी करने में आनंद ही आनंद है

लगभग दस बारह साल का एक बच्चा एक मकान का दरवाज़ा बजा रहा है। मकान मालकिन ने बाहर आकर पूंछा "क्या है?"
बच्चे ने कहा "आंटी! क्या मैं आपका गार्डन साफ कर दूं?" मकान मालकिन ने कहा "नहीं, हमें गार्डन साफ़ नहीं करवाना है।"
बच्चे ने हाथ जोड़ते हुए बहुत ही दर्द भरी आवाज़ में कहा "प्लीज आंटी! अपना गार्डन साफ़ करा लीजिये न, बहुत ही अच्छे से साफ करूंगा. "ना चाहते हुए भी मकान मालकिन ने कहा "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा?"
पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना। "ओह !! अच्छे से काम करना।" "लगता है, बेचारा भूखा है। पहले खाना दे देती हूँ। मकान मालकिन मन ही मन में बुदबुदायी।" "ऐ लड़के! पहले खाना खा ले, फिर काम करना। "नहीं आंटी! पहले काम कर लूँ, फिर आप खाना दे देना।" "ठीक है कहकर मकान मालकिन अपने काम में लग गयी।"
एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।" "अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी क़रीने से जमा दिए। यहाँ बैठ, मैं खाना लाती हूँ। "जैसे ही मकान मालकिन ने उसे खाना दिया, वह जेब से प्लास्टिक की थैली निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।"
मालकिन यह देखकर कहने लगी. "भूखे पेट काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। ज़रूरत होगी तो और दे दूंगी।" बच्चे ने जवाब दिया "नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है। सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है, पर डाॅक्टर साहब ने कहा है दवा ख़ाली पेट नहीं खाना है।"

बच्चे की यह बात सुनकर मकान मालकिन रो पड़ी और अपने हाथों से बच्चे को उसकी दुसरी माँ बनकर भर पेट  खाना खिलाया. फिर उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई और बच्चे के साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आई और कह आई... बहन आप बहुत अमीर हो, जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है, वह हम अपने बच्चो को भी नहीं दे पाते।

ज़रूरतमंदों की ज़रूरतें पुरी करने में आनंद ही आनंद है.

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