बहू घर में ब्याह कर आई तो सब ऒर हंसी ख़ुशी का माहौल बन गया,धीरे धीरे सब मेहमान विदा हो गए, अब घर में बची तीन सगी ननदे ।एक एक कर उनकी भी विदाई होनी थी तभी छोटी बोली,--अम्मा ,दिखलाओ तो बहू क्या क्या कपड़ा लत्ता लाई है,दोनों बड़ी बहिनों ने भी अनुमोदन किया ।हाँ,हाँ, क्यों नही, कहते हुए अम्मा ने कमर से चाभी निकाली,बहू की अटैची खोली जा चुकी थी ,एक से बढ़कर एक सुंदर ,मंहगी साड्डी सामने बिखरी थी ,तीनो ननदो की आँखे चमक उठी ,आँखों ही आँखों में इशारे हुए,माँ की सहमति का इशारा समझते हुए तीनो ने अपनी अपनी पसन्द की साडी का चुनाव कर लिया, उन पर हाथ फिराते हुए बड़ी बोल उठी--अम्मा यह साडी तो मै लूंगी,छोटे भाई का ब्याह हुआ है,इतना हक तो बनता है,शेष दोनों बहिने बोल उठी --हाँ अम्मा और क्या ,जीजी सही तो कह रही है।अम्मा ने मुस्कुराते हुए सामने बैठी बहू से पूछा,--क्यों बहू ,तुम्हे कोई एतराज तो नहीं है?बहू सकपकाते हुए बोली--नहीँ,अम्माजी जैसा आप ठीक समझे,साथ ही उसकी आँखों के आगे मोती झिलमिलाने लगे,उसमे से एक साडी उसके पापा ने जन्मदिन पर उपहार में दी थी,जो अब इस दुनिया में भी नही है,दूसरी साडी उसकी सहेली कितने प्यार से पूरा बाजार छानकर लाई थी और तीसरी साडी उसने अपनी पहली कमाई से खरीदी थी, पर वह विवश थी ,नई बहू थी,मुंह नही खोल सकती थी ,तीनो ननदे ख़ुशी ख़ुशी साडी लेकर चलती बनी।जैसे ही छोटी नन्द अपने घर पहुंची, फोन आया---अम्मा पता है ,जो साड़ी तुमने इतने प्यार से दी ,वह मेरी नन्द को पसन्द आ गई है,वह मांग रही है ,बहुत गुस्सा आ रहा है ,अब मै क्या करूँ ? तभी बहू ने अम्मा जी का तमतमाया स्वर सुना--कोई ज़रूरत नही है,साफ मना करना सीखो,कह दो अम्मा ने बड़े प्यार से दी है,समझी कुछ ,दे मत देना, इतनी मंहगी और अच्छी साडी है। बहू ने भी भविष्य के लिए यह सबक अच्छी तरह से याद कर लियाl
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