अहंकार की कीमत l

अहंकार की कीमत
अशोक गया और भिक्षु के चरणों में सिर रख दिया। अशोक के आमात्य (वजीर ) उसे यह अच्छा नहीं लगा। महल लौटते ही उसने कहा कि नहीं सम्राट, यह मुझे ठीक नहीं लगा। आप जैसा सम्राट, जिसकी कीर्ति शायद जगत में कोई सम्राट नहीं छू सकेगा फिर, वह एक साधारण से भिखारी के चरणों पर सिर रखे!
अशोक हंसा और चुप रह गया। महीने भर, दो महीने बीत जाने पर उसने वजीर को बुलाया और कहा कि तुम यह सामान ले जाओ और गांव में बेच आओ। सामान बड़ा अजीब था। उसमें बकरी का सिर था, गाय का सिर था, आदमी का सिर था, कई जानवरों के सिर थे और कहा कि जाओ बेच आओ बाजार में।
वह वजीर बेचने गया। गाय का सिर भी बिक गया और घोड़े का सिर भी बिक गया, सब बिक गया, वह आदमी का सिर नहीं बिका। कोई लेने को तैयार नहीं था कि इस गंदगी को कौन लेकर क्या करेगा? इस खोपड़ी को कौन रखेगा? वह वापस लौट आया और कहने लगा कि महाराज! बड़े आश्चर्य की बात है, सब सिर बिक गए हैं, सिर्फ आदमी का सिर नहीं बिक सका। कोई नहीं लेता है।
सम्राट ने कहा कि मुफ्त में दे आओ। वह वजीर वापस गया और कई लोगों के घर गया कि मुफ्त में देते हैं इसे, इसे आप रख लें। उन्होंने कहा. पागल हो गए हो! और फिंकवाने की मेहनत कौन करेगा? आप ले जाइए। वह वजीर वापस लौट आया और सम्राट से कहने लगा कि नहीं, कोई मुफ्त में भी नहीं लेता।
अशोक ने कहा कि अब मैं तुमसे यह पूछता हूं कि अगर मैं मर जाऊं और तुम मेरे सिर को बाजार में बेचने जाओ तो कोई फर्क पड़ेगा? वह वजीर थोड़ा डरा और उसने कहा कि मैं कैसे कहूं क्षमा करें तो कहूं। नहीं, आपके सिर को भी कोई नहीं ले सकेगा। मुझे पहली दफा पता चला कि आदमी के सिर की कोई भी कीमत नहीं है।
उस सम्राट ने कहा, उस अशोक ने कि फिर इस बिना कीमत के सिर को अगर मैंने एक भिखारी के पैरों में रख दिया था तो क्यों इतने परेशान हो गए थे तुम।
आदमी के सिर की कीमत नहीं, अर्थात आदमी के अहंकार की कोई भी कीमत नहीं है। आदमी का सिर तो एक प्रतीक है आदमी के अहंकार का !

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