अतः कर्म करो, आलोचनाओं की चिंता न करो...!

*कटु सत्य..
एक साधू किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया....!!!
पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं !!!
तो आईं तो एक ने कहा- आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया... पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।"
पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली... उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया...
दूसरी बोली-- साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई..
अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया।"
तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें ?
तब तीसरी बोली-
"बाबा! यह तो पनघट है,यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"
लेकिन चौथी ने
बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-
"क्षमा करना,लेकिन हमको लगता है, तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है।
दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तूम जैसे भी हो, हरिनाम लेते रहो।"
सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना...
आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे...
"अभिमानी हो गए।" नीचे दखोगे तो कहेंगे... बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"आंखे बंद करोगे तो कहेंगे कि...
"ध्यान का नाटक कर रहा है।"
चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि... निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।
और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो दुनिया कहेगी कि...
"किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"
ईश्वर को राजी करना आसान है..., लेकिन संसार को राजी करना असंभव है.... !!
"अतः कर्म करो, आलोचनाओं की चिंता न करो...!!

No comments:

Post a Comment

टिकट कहाँ है...? टी सी ने बर्थ के नीचे छिपी लगभग तेरह - चौदह साल की लडकी से पूछा टिकिट नहीं है साहब काँपती हुई हाथ जोड़े लडकी बोली, ...